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बीए सेमेस्टर-3 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2649
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 प्राचीन भारतीय इतिहास

अध्याय - 1

प्राचीन भारतीय इतिहास अध्ययन के स्रोत

(Sources of Ancient Indian History Studies)

 

प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।

अथवा
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के विभिन्न स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
भारतीय इतिहांस जानने के साधनों को स्पष्ट कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. प्राचीन इतिहास जानने के साहित्यिक साक्ष्य बताइये।
2. प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने में पुरातात्विक साक्ष्य कहाँ तक उपयोगी हैं?
3. प्राचीन इतिहास को जानने हेतु विदेशी यात्रियों के विवरण से हमें किस प्रकार सहायता मिलती है? स्पष्ट कीजिए।
4. भारतीय इतिहास के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।

अथवा
प्राचीन भारतीय इतिहास के कौन-कौन से स्रोत हैं?
5. पुरातात्विक साक्ष्यों में अभिलेखीय साक्ष्य द्वारा इतिहास की कैसे और किसकी जानकारी प्राप्त होती है?
6. लेखन में मुद्रा सम्बन्धी साक्ष्यों के महत्व की विवेचना कीजिए।
7. प्राचीन भारतीय इतिहास ज्ञात करने के साधनों को समझाइये।
8. प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के पुरातात्विक स्रोत क्या हैं?

उत्तर -

प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के साधन

भारत का प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवपूर्ण रहा है। यद्यपि दुर्भाग्यवश हमें अपने प्राचीन इतिहास के पुननिर्माण के लिए उपयोगी सामग्री बहुत कम मिलती है फिर भी यदि हम सावधानीपूर्वक अपने प्राचीन साहित्यिक ग्रन्थों की छानबीन करें तो उनमें हमें अपने इतिहास के पुननिर्माणार्थ अनेक महत्वपूर्ण सामग्रियाँ उपलब्ध होंगी। इसके अतिरिक्त भारत में समय-समय पर विदेशों से आने वाले यात्रियों के भ्रमण - वृतान्त भी प्राचीन इतिहास के विषय में अनेक उपयोगी सामग्रियाँ प्रदान करते हैं। इसी प्रकार पुरातत्वेत्ताओं ने अतीत के खण्डहरों से अनेक ऐसी वस्तुएँ खोज निकाली हैं जो हमें प्राचीन इतिहास विषयक महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान करती हैं। अतः हम सुविधा की दृष्टि से भारतीय इतिहास जानने के साधनों को निम्नलिखित तीन वर्गों में रख सकते हैं - 

1. साहित्यिक स्रोत - साहित्यिक स्रोत के अन्तर्गत धार्मिक साहित्य तथा लौकिक साहित्य आते हैं। धार्मिक साहित्य मंव ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेतर ग्रन्थों की चर्चा की जाती है और लौकिक साहित्य में एतिहासिक ग्रन्थों, जीवनियों, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है। इन स्रोतों को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।

(i) ब्राह्मण साहित्य - ब्राह्मण ग्रन्थों में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत तथा पुराण आते हैं। इनका विवरण निम्नवत् है -

(अ) वेद - वेद भारत के सबसे प्राचीन धर्मग्रन्थ हैं। वैदिक युग की सांस्कृतिक दशां के ज्ञान का एकमात्र स्रोत होने के कारण वेदों का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है। प्राचीन काल के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण सभी सामग्री हमं् प्रचुर मात्रा में वेदों से प्राप्त हो जाती हैं। वेदों की संख्या चार है - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। इन वेदों में ऋग्वेद समस्त आर्य जाति की प्राचीनतम रचना है। इस प्रकार यह भारत तथा भारतेत्तर प्रदेश के आर्यों के इतिहास, भाषा, धर्म एवं उनकी सामान्य संस्कृति पर प्रकाश डालता है। यजुर्वेद या सामवेद से कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है। अथर्ववेद का ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इसमें सामान्य मनुष्यों के विचारों तथा अन्धविश्वासों का विवरण मिलता है। इसमें मानव जीवन के सभी पक्षों, जैसे गृह-निर्माण, कृषि की उन्नति, रोग निवारण समन्वय विवाह तथा प्रणय-गीतों, राजभक्ति, राजा का चुनाव, विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों तथा औषधियों आदि का विवरण मिलता है। इसके कुछ मन्त्रों में जादू-टोने का भी उल्लेख है जिससे इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि इस समय तक आर्य-अनार्य संस्कृतियों का समन्वय हो रहा था तथा आर्यों ने अनार्यों के कई सामाजिक एवं धार्मिक रीति-रिवाजों एवं विश्वासों को ग्रहण कर लिया था।

(ब) ब्राह्मण - आरण्यक तथा उपनिषद् वेदों के पश्चात् ब्राह्मणों, आरण्यकों तथा उपनिषदों का स्थान है। इनसे उत्तर वैदिक युग के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है। ऐतरेय, शतपथ, तैत्तिरीय, पंचविश, गोपथ आदि ब्राह्मण ग्रन्थ वैदिक संहिताओं की व्याख्या करने के लिए गद्य में लिखे गये हैं। इनसे हमें परीक्षित के बाद विम्बिसार के पूर्व की घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है। ऐतरेय में राज्याभिषेक के नियम तथा कुछ प्राचीन राजाओं के नाम दिये गये हैं। शतपथ में गन्धार, शल्य, कुरु, पांचाल, कोसल, विदेह आदि के राजाओं का उल्लेख मिलता है। प्राचीन इतिहास के स्रोत के रूप में वैदिक साहित्य के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है। कर्मकाण्डों के अतिरिक्त इसमें सामाजिक विषयों का भी वर्णन है। इसी प्रकार आरण्यक तथा उपनिषद भी प्राचीन इतिहास के विषय में जानकारी प्रदान करते हैं। यद्यपि ये मुख्यतः दार्शनिक ग्रन्थ हैं जिनका उद्देश्य ज्ञान की खोज करना है।

(स) वेदांग तथा सूत्र - वेदों को समझने के लिए छः वेदांगों शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरुक्त तथा छन्द की रचना की गयी। इनसे वेदों के शुद्ध उच्चारण तथा यज्ञादि करने में सहायता प्राप्त होती थी। इसी प्रकार वैदिक साहित्य को सदा बनाये रखने के लिए सूत्र साहित्य की रचना की गयी। श्रौत, गृह्य तथा धर्मसूत्रों के अध्ययन से हम यज्ञीय विधि-विधानों, कर्मकाण्डों तथा राजनीति, विधि एवं व्यवहार से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त करते हैं।

(द) महाकाव्य रामायण एवं महाभारत - भारत के सम्पूर्ण धार्मिक साहित्य में रामायण एवं महाभारत का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। इनके अध्ययन से हमें प्राचीन हिन्दू संस्कृति के विविध पक्षों का सुन्दर ज्ञान प्राप्त होता है। इन महाकाव्यों द्वारा प्रतिपादित आदर्श तथा मूल्य सार्वभौम मान्यता रखते हैं। महर्षि बाल्मीकि द्वारा रचित रामायण आदिकाव्य है जिससे हमें हिन्दू तथा यवनों और शकों के संघर्ष का विवरण प्राप्त होता है। इसमें यवन देश तथा शकों के नगर को कुरु तथा मद्र देश और हिमालय के बीच "स्थित बताया गया है। इससे ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उन दिनों यूनानी तथा सीथियन लोग पंजाब के कुछ भागों में बसे हुये थे। इसी प्रकार वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत से प्राचीन भारत की सामाजिक, धार्मिक तथा राजनैतिक दशा का परिचय मिलता है। प्राचीन राजनीति तथा शासन की जानकारी हेतु महाभारत में बहुमूल्य सामग्रियों का भण्डार है। 

(य) पुराण - भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे उत्तम और क्रमबद्ध विवरण पुराणों से प्राप्त होता है। इनकी संख्या 18 है। अट्ठारह पुराणों में से केवल पाँच में (मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्रह्माण्ड, भागवत ) ही प्राचीन राजाओं की वंशावली पायी जाती है। इनमें मत्स्य पुराण सबसे अधिक प्राचीन एवं प्रामाणिक है। पुराणों से हमें प्राचीन काल से लेकर गुप्तकाल के इतिहास से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं के विषय में जानकारी प्राप्त हो जाती है। छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व के पहले के प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निमाण के लिए पुराणों को ही एकमात्र स्रोत माना जाता है। 

(ii) ब्राह्मणेतर साहित्य - ब्राह्मणेतर साहित्य में बौद्ध तथा जैन साहित्यों से सम्बन्धित रचनाओं का उल्लेख किया जा सकता है। इनका विवरण निम्नवत् है -  

(अ) बौद्ध ग्रन्थ - बौद्ध ग्रन्थों में 'त्रिपिटक' सबसे महत्वपूर्ण हैं। बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं को तीन भागों विनयपिटक, सुत्तपिटक तथा अभिधम्मपिटक में बाँटा गया, जिन्हें त्रिपिटक कहा गया। त्रिपिटकों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये बौद्ध संघों के संगठन का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करते हैं। इसके अतिरिक्त निकाय तथा जातक आदि से भी हमें बहुत-सी सामग्री उपलब्ध होती है। जातकों से बुद्ध के पूर्व जन्म के बारे में पता चलता है। कुछ जातक ग्रन्थों में बुद्ध के समय की राजनीतिक अवस्था का विवरण मिलता है जिससे समाज और सभ्यता के विभिन्न पहलुओं का परिचय मिलता है। पाली भाषा का एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थ 'मिलिन्दपण्हो' है जिससे हिन्द-ग्रवन शासक मेनाण्डर के विषय में सूचनाएँ मिलती हैं। 

(ब) जैन ग्रन्थ - जैन साहित्य का दृष्टिकोण भी बौद्ध साहित्य के समान ही धर्मपरक है। जैन ग्रन्थों में परिशिष्टपर्वन्, भद्रबाहुचरित, आवश्यकसूत्र, भगवतीसूत्र, कालिकापुराण आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनसे अनेक ऐतिहासिक घटनाओं की सूचना मिलती है। जैन धर्म का प्रारम्भिक इतिहास 'कल्पसूत्र' से ज्ञात होता है। परिशिष्टपर्वन् तथा भद्रबाहुचरित से चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन की प्रारम्भिक तथा उत्तरकालीन घटनाओं की सूचना मिलती है। भगवतीसूत्र से महावीर के जीवन कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके सम्बन्धों का विस्तृत विवरण मिलता है। इसी प्रकार आचारांगसूत्र से जैन भिक्षुओं के आचार-नियमों का पता चलता है। जैन साहित्य में पुराणों का भी महत्वपूर्ण स्थान है, जिन्हें 'चरित' भी कहा जाता है। इनमें पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, आदिपुराण इत्यादि महत्वपूर्ण हैं। यद्यपि इनमें मुख्य रूप से कथाएँ दी गई हैं फिर भी इनके अध्ययन से विभिन्न कालों की सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक दशा का बहुत-कुछ ज्ञान प्राप्त हो जाता है। 

(iii) लौकिक साहित्य - लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं अर्द्ध ऐतिहासिक ग्रन्थों तथा जीवनियों का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है -

(अ) ऐतिहासिक ग्रन्थ - ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वप्रमुख ग्रन्थ कौटिल्य (चाणक्य) का 'अर्थशास्त्र' है जिससे हमें मौर्यकालीन इतिहास एवं राजनीति के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। इस ग्रन्थ से चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था पर प्रचुर मात्रा में प्रकाश पड़ता है। ऐतिहासिक रचनाओं में सर्वाधिक महत्व कल्हण द्वारा विरचित 'राजतरंगिणी' का है। इसमें आदिकाल से लेकर 1151 ई. के आरम्भ तक के कश्मीर के प्रत्येक राजा के समय की घटनाओं का क्रमानुसार विवरण दिया गया है। इसी प्रकार सोमेश्वर कृत 'रसमाला' तथा 'कीर्तिकौमुदी, मेरुतुंग कृत 'प्रबन्धचिन्तामणि', राजशेखर कृत 'प्रबन्धकोश' आदि से हमें गुजरात के चालुक्य वंश के इतिहास एवं संस्कृति का विवरण प्राप्त होता है।

(ब) अर्द्ध- ऐतिहासिक ग्रन्थ - अर्द्ध ऐतिहासिक रचनाओं में पाणिनी का 'अष्टाध्यायी, कात्यायन का 'वार्तिक', 'गार्गीसंहिता, पंतजलि का 'महाभाष्य' विशाखदत्त का 'मुद्राराक्षस' तथा कालिदास का, मालविकाग्निमित्र' इत्यादि अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। कात्यायन तथा पाणिनी के व्याकरण ग्रन्थों से मौर्यों के पहले के इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था पर प्रकाश पड़ता है। इनसे उत्तर भारत के भूगोल की भी जानकारी होती है। 'गार्गीसंहिता' से भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का पता चलता है। 'मुद्राराक्षस' से चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में सूचना मिलती है। इसी प्रकार 'मालविकाग्निमित्र' से शुंगकालीन राजनीतिक परिस्थितियों का विवरण मिलता है।  

(स) ऐतिहासिक जीवनी - ऐतिहासिक जीवनियों में बाणभट्ट का 'हर्षचरित' विल्हण का 'विक्रमांकदेवचरित', अश्वघोष का 'बुद्धचरित' हेमचन्द्र का 'कुमारपालचरित' जयानक 'पृथ्वीराजविजय' आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 'हर्षचरित' से सम्राट हर्षवर्द्धन के जीवन तथा तत्कालीन समाज के विषय में सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। 'विक्रमांकदेवचरित' कल्याणी के चालुक्यवंशी नरेश विक्रमादित्य षष्ठ के चरित्र का विवरण प्रस्तुत करता है। 'बुद्धचरित' में गौतम बुद्ध के चरित्र का विस्तृत वर्णन हुआ है। इसी प्रकार 'पृथ्वीराजविजय' से चाहमान राजवंश के इतिहास का ज्ञान प्राप्त होता है।

उत्तर भारत के समान दक्षिण भारत से भी अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्राप्त हुये हैं जिनसे वहाँ शासन करने वाले कई राजवंशों के इतिहास एवं संस्कृति के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।

2. विदेशी यात्रियों के विवरण - प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों के विवरण से हमें पर्याप्त सहायता मिलती है। भारत में आने वाले विदेशी यात्रियों एवं लेखकों में से कुछ ने तो भारत में रहकर अपने स्वयं के अनुभव से इतिहास के विषय में लिखा तथा कुछ ने जनश्रुतियों एवं भारतीय ग्रन्थों को अपने विवरण का आधार बनाया। इन लेखकों में यूनानी, चीनी तथा अरबी-फारसी लेखक विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनका विवरण निम्नवत् है -

i. यूनानी - रोमन लेखक - यूनान के प्राचीनतम लेखकों में हेरोडोटस का नाम प्रसिद्ध है। उसने अपनी पुस्तक 'हिस्टोरिका (Historica) में पाँचवी शताब्दी ईसा पूर्व के भारत-फारस के सम्बन्ध का वर्णन किया है। परन्तु उसका विवरण अधिकांशत: अनुश्रुतियों तथा अफवाहों पर आधारित है। सिकन्दर के साथ आने वाले लेखकों में नियार्कस, आनेसिक्रिटस तथा आरिस्टोबुलस के विवरण अपेक्षाकृत अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं। चूँकि इन लेखकों का उद्देश्य अपनी रचनाओं के द्वारा अपने देशवासियों को भारतीयों के विषय में जानकारी देना था, अतः इनका विवरण यथार्थ है। सिकन्दर के बाद मेगस्थनीज, डाइमेक्स तथा डायोनिसियस के नाम उल्लेखनीय हैं जो यूनानी शासकों द्वारा पाटलिपुत्र के मौर्य दरबार में भेजे गये थे। इनमें मेगस्थनीज सर्वाधिक प्रसिद्ध है। वह चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था। उसने 'इण्डिका' (Indica) नामक पुस्तक में मौर्ययुगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है। इण्डिका यूनानियों द्वारा भारत के सम्बन्ध में प्राप्त ज्ञानराशि में सबसे अमूल्य रत्न है। अन्य ग्रन्थों में 'पेरीप्लस ऑफ द इरिथ्रयन- सी (Periplus of the Erythrean Sea), टालमी का भूगोल, प्लिनी का 'नेचुरल हिस्ट्री' (Natural History) आदि का भी उल्लेख किया जा सकता है। पेरीप्लस का लेखक 80 ई. के लगभग हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था। उसने तत्कालीन बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं का विवरण दिया है। प्राचीन भारत के समुद्री व्यापार की जानकारी के लिये उसका विवरण बहुत उपयोगी है। दूसरी शताब्दी ईस्वी में टालमी ने भारत का भूगोल लिखा था। प्लिनी का ग्रन्थ प्रथम शताब्दी ईस्वी का है। इस ग्रन्थ से भारत के प्राचीन पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थों आदि के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है। 

ii. चीनी लेखक - प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने में चीनी यात्रियों के विवरण भी विशेष उपयोगी रहे हैं। ये चीनी यात्री बौद्ध मतानुयायी थे तथा भारत में बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा और बौद्ध धर्म के विषय में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से आये थे। इनमें चार के नाम विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं - फाहियान, सुंगयुन, हवेनसांग तथा इत्सिंग। फाहियान, गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय 'विक्रमादित्य के दरबार में आया था। उसने अपने विवरण में मध्यदेश के समाज एवं संस्कृति का वर्णन किया है। सुंगयुन 518 ई. में भारत आया और उसने अपने तीन वर्ष की यात्रा में बौद्ध ग्रन्थों की प्रतियाँ एकत्रित कीं। ह्वेनसांग हर्षवर्द्धन के शासनकाल में (629 ई. लगभग) भारत आया था। उसने 16 वर्षों तक यहाँ निवास किया और विभिन्न स्थानों की यात्रा की। उसका भ्रमण वृतान्त 'सि-यू-की' नाम से प्रसिद्ध है जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है। इससे हर्षकालीन भारत के समाज, धर्म तथा राजनीति पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है। भारतीय संस्कृति के इतिहास में ह्वेनसांग ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इत्सिंग सातवीं शताब्दी के अन्त में भारत आया था। उसके विवरण से नालन्दा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा तत्कालीन भारत के विषय में जानकारी प्राप्त होती हैं।

iii. अरबी लेखक - अरब के यात्रियों तथा लेखकों के विवरण से हमें पूर्वमध्यकालीन भारत के समाज एवं संस्कृति के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है। अरबी लेखकों में अल्बरूनी का नाम सर्वप्रसिद्ध है। गणित, विज्ञान एवं ज्योतिष के साथ ही साथ वह अरबी, फारसी एवं संस्कृत भाषाओं का भी अच्छा ज्ञाता था। वह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था किन्तु उसका दृष्टिकोण महमूद से पूर्णतया भिन्न था और वह भारतीयों का निन्दक न होकर उनकी बौद्धिक सफलताओं का महान प्रशंसक था। भारतीय संस्कृति के अध्ययन में उसकी गहरी रुचि थी तथा गीता से वह विशेष रूप से प्रभावित हुआ। उसने भारतीयों से जो कुछ सुना उसी के आधार पर उनकी सभ्यता का विवरण प्रस्तुत कर दिया। अपनी पुस्तक 'तहकीक-ए- हिन्द' (भारत की खोज) में उसने यहाँ के निवासियों की दशा का वर्णन किया है। इससे राजपूतकालीन समाज, धर्म, रीति-रिवाज, राजनीति आदि पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है। अल्बरूनी के अतिरिक्त अल- बिलादुरी, सुलेमान, अल-मसऊदी हसन निजाम, फरिश्ता, निजामुद्दीन आदि मुसलमान लेखकों की कृतियों से भी प्राचीन भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं।

इस प्रकार विदेशी यात्रियों के विवरण प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने में हमारी विशेष रूप से सहायता करते हैं। इन विवरणों के आधार पर हम भारत के प्राचीन इतिहास का पुननिर्माण कर सकते हैं।

3. पुरातात्विक स्रोत पुरातात्विक स्रोत - के अन्तर्गत पृथ्वी के गर्भ में छिपी हुयी सामग्रियों को शामिल किया जाता है। प्राचीन इतिहास के ज्ञान के लिये पुरातात्विक प्रमाणों से बहुत अधिक सहायता मिलती है। पुरातत्व के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकार के साक्ष्य आते हैं - 

(i) अभिलेख - प्राचीन इतिहास के पुनर्निर्माण में अभिलेखों से बहुत सहायता मिलती है। बहुत से अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों, दीवारों, मुद्राओं एवं प्रतिमाओं आदि पर खुदे हुये प्राप्त हुये हैं। मध्य ऐशिया के बोघजकोई से प्राप्त अभिलेख सबसे प्राचीन अभिलेखों में है। यह हित्ती नरेश सप्पिलुल्युमा तथा मितन्नी नरेश मतिवजा के बीच सन्धि का उल्लेख करता है। अपने यथार्थ रूप में अभिलेख अशोक के समय से ही हमें प्राप्त होते हैं। अशोक के समय के कई स्तम्भ लेखों एवं शिलालेखों से उसके साम्राज्य की सीमा, उसके धर्म तथा शासन नीति से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। अशोक के बाद भी अभिलेखों की परम्परा कायम रही है। ऐसे लेखों में खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख, रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख, समुद्रगुप्त का प्रयागस्तम्भ लेख, यशोधर्मन का मन्दसोर अभिलेख, पुलकेशिन द्वितीय का एहोल अभिलेख, भोज का ग्वालियर अभिलेख अदि विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। इनमें से अधिकांश लेखों से तत्सम्बन्धी राजाओं और उनके सैनिक अभियानों के विषय में पता चलता है। कुछ अभिलेख ताम्रपत्रों, मूर्तियों आदि के ऊपर खुदे हुए मिले हैं। इनसे भी प्राचीन इतिहास के विषय में अनेक महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।

(ii) मुद्रायें अथवा सिक्के - भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में मुद्राओं अथवा सिक्कों को महत्वपूर्ण पुरातात्विक साक्ष्य माना जाता है। यद्यपि भारत मे सिक्कों की प्रचीनता आठवीं शती ईसा पूर्व तक मानी जाती है तथापि ईसा पूर्व छठी शताब्दी से ही हमें सिक्के प्राप्त होने लगते हैं। साधारणतया 206 ईसा पूर्व से लेकर 300 ई. तक के भारतीय इतिहास का ज्ञान हमें मुख्य रूप से मुद्राओं की सहायता से ही होता है। कुछ मुद्राओं पर तिथियाँ भी खुदी मिली हैं जो कालक्रम के निर्धारण में सहायक सिद्ध हुयी हैं। इन मुद्राओं से तत्कालीन आर्थिक दशा तथा सम्बन्धित राजाओं की साम्राज्य- सीमा का भी ज्ञान होता है। किसी काल में सिक्कों की बहुलता देखकर हम इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि उस समय व्यापार वाणिज्य विकसित दशा में था। सिक्कों की कमी को व्यापार वाणिज्य की अवनति का सूचक माना जा सकता है। मुद्राओं के अध्ययन से हमें सम्राटों के धर्म तथा उनके व्यक्तित्व के विषय में पता चलता है। उदाहरण के लिये, हम कनिष्क तथा समुद्रगुप्त की मुद्राओं को ले सकते हैं। कनिष्क के सिक्कों से इस बात की जानकारी होती है कि वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। समुद्रगुप्त अपनी कुछ मुद्राओं पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है जिससे यह पता चलता है कि वह संगीत प्रेमी था। इसी प्रकार इण्डो-बैक्ट्रियन, इण्डो-यूनानी तथा इण्डो- सीथियन शासकों के इतिहास के प्रमुख स्रोत सिक्के ही हैं। 

(iii) स्मारक - इसके अन्तर्गत मन्दिर, मूर्तियाँ, प्राचीन इमारतें इत्यादि आती हैं। मन्दिर, विहारों तथा स्तूपों से समाज के आध्यात्मिक एवं धर्मनिष्ठ भावना का पता चलता है। विभिन्न स्थानों से प्राप्त सामग्रियों से प्राचीन इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर सुन्दर प्रकाश पड़ता है। देवगढ़ का मन्दिर, भीतरगाँव का मन्दिर, अजन्ता की गुफाओं के चित्र, नालन्दा की बुद्ध की ताम्रमूर्ति आदि से हिन्दू कला एवं सभ्यता "के पर्याप्त विकसित होने के प्रमाण मिलते हैं। दक्षिण भारत से भी अनेक स्मारक प्राप्त हुए हैं। तन्जौर का राजराजेश्वर मन्दिर द्रविड़ शैली का उत्तम उदाहरण है। पल्लवकालीन कई ऐसे मन्दिर मिले हैं जो वास्तु एवं स्थापत्य के उत्कृष्ट स्वरूप को प्रकट करते हैं।

इस प्रकार साहित्यिक स्रोत, विदेशी यात्रियों के विवरण तथा पुरातात्विक स्रोत के सम्मिलित साक्ष्य के आधार पर हम भारत के प्राचीन इतिहास का पुनर्निर्माण कर सकते हैं।.

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास को समझने हेतु उपयोगी स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- सन 1909 ई. अधिनियम पारित होने के कारण बताइये।
  3. प्रश्न- प्राचीन भारत के इतिहास को जानने में विदेशी यात्रियों / लेखकों के विवरण की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, (1909 ई.) के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1909 ई. के मुख्य दोषों पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में आप क्या जानते हैं?
  8. प्रश्न- 1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  9. प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
  10. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
  11. प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
  12. प्रश्न- 'भारत के प्रजातन्त्रीकरण में 1935 ई. के अधिनियम ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। क्या आप इस कथन से सहमत हैं?
  13. प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई. के प्रमुख प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
  15. प्रश्न- अरबों के आक्रमण के समय उत्तर भारत की राजनीतिक दशा का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- सन् 1995 ई. के अधिनियम के अन्तर्गत गर्वनरों की स्थिति व अधिकारों का परीक्षण कीजिए।
  17. प्रश्न- हर्षवर्द्धन के इतिहास को समझने में ह्वेनसांग के विवरण हमारी कहाँ तक सहायता करते हैं?
  18. प्रश्न- माण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार (1919 ई.) के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- हर्ष की प्रारम्भिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए उसकी राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियाँ बताइए।
  20. प्रश्न- लोकतंत्र के आयाम से आप क्या समझते हैं? लोकतंत्र के सामाजिक आयामों पर प्रकाश डालिए।
  21. प्रश्न- हर्ष के पश्चात् कन्नौज की स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- लोकतंत्र के राजनीतिक आयामों का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- सिन्ध पर अरब आक्रमण के प्रभाव की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले कारकों पर प्रकाश डालिये।
  25. प्रश्न- कश्मीर के राजनैतिक इतिहास में भाग लेने वाले वंशों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने वाले संवैधानिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
  27. प्रश्न- कश्मीर के शासक ललितादित्य मुक्तापीड के शासनकाल व राजनैतिक सफलताओं के विषय में बताइए।
  28. प्रश्न- संघवाद (Federalism) से आप क्या समझते हैं? क्या भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है? यदि हाँ तो उसके लक्षण क्या-क्या हैं?
  29. प्रश्न- कश्मीर के हिन्दू राज्य का इतिहास हमें किस ग्रन्थ से प्राप्त होता है?
  30. प्रश्न- भारतीय संविधान संघीय व्यवस्था स्थापित करता है। संक्षेप में बताएँ।
  31. प्रश्न- ललितादित्य व यशोवर्मन के मध्य हुए पारस्परिक संर्घष के विषय में बताइए।
  32. प्रश्न- संघवाद से आप क्या समझते हैं? संघवाद की पूर्व शर्तें क्या हैं? भारत के सन्दर्भ में संघवाद की उभरती हुई प्रवृत्तियों की चर्चा कीजिए।
  33. प्रश्न- कन्नौज के शासक यशोवर्मन के प्रारम्भिक जीवन एवं राजनीतिक सफलता के विषय में बताइए |
  34. प्रश्न- भारत के संघवाद को कठोर ढाँचे में नही ढाला गया है" व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- यशोवर्मन की मृत्यु के पश्चात् कन्नौज पर अधिकार करने के लिये किन शक्तियों में त्रिकोणात्मक संर्घष प्रारम्भ हुआ? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- राज्यों द्वारा स्वयत्तता (Autonomy) की माँग से आप क्या समझते हैं?
  37. प्रश्न- कन्नौज का यशोवर्मन किस वंश का था? बताइए।
  38. प्रश्न- क्या भारत को एक सच्चा संघ (True Federation) कहा जा सकता है?
  39. प्रश्न- यशोवर्मन के शासनकाल के विषय में बताते हुए उसके दरबार के विद्वानों तथा उत्तराधिकारियों के नाम बताइए।
  40. प्रश्न- संघीय व्यवस्था में केन्द्र शक्तिशाली है क्यों?
  41. प्रश्न- त्रि-शक्ति संघर्ष के विषय में लिखिए।
  42. प्रश्न- क्या भारतीय संघीय व्यवस्था में गठबन्धन की सरकारें अपरिहार्य हैं? चर्चा कीजिए।
  43. प्रश्न- सिंध राजवंश के विषय में विस्तृत रूप से बताइये।
  44. प्रश्न- क्या क्षेत्रीय राजनीतिक दल भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए संकट है? चर्चा कीजिए।
  45. प्रश्न- सिंध पर अरबों की सफलता के क्या कारण थे?
  46. प्रश्न- केन्द्रीय सरकार के गठन में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- "चचनामा" के विषय में संक्षिप्त रूप से बताइये।
  48. प्रश्न- भारत में गठबन्धन सरकार की राजनीति क्या है? गठबन्धन धर्म से क्या तात्पर्य है?
  49. प्रश्न- दाहिर व मोहम्मद बिन कासिम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  50. प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
  51. प्रश्न- सिन्ध के इतिहास को संक्षिप्त रूप से अवगत कराइये।
  52. प्रश्न- राजनीतिक दलों का वर्गीकरण करें। दलीय पद्धति कितने प्रकार की होती है? गुण-दोषों के आधार पर विवेचना कीजिए।
  53. प्रश्न- अरोड़ की लड़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  54. प्रश्न- दलीय पद्धति के लाभ व हानियाँ क्या हैं?
  55. प्रश्न- राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न मतों की विवेचना कीजिए।
  56. प्रश्न- भारतीय दलीय व्यवस्था में पिछले 60 वर्षों में आए परिवर्तनों के कारणों की चर्चा कीजिए।
  57. प्रश्न- राजपूतकालीन सामाजिक संरचना का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- आर्थिक उदारवाद के इस युग में भारत में गठबंधन की राजनीति के भविष्य की आलोचनात्मक चर्चा कीजिए।
  59. प्रश्न- राजपूतों की अग्निकुण्ड से उत्पत्ति के विषय में बताइए।
  60. प्रश्न- दलीय प्रणाली (Party System) में क्या दोष पाये जाते हैं?
  61. प्रश्न- अलबरूनी के भारत विवरण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
  63. प्रश्न- राजपूतों के स्थानीय प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय दलों के उदय एवं विकास के लिए उत्तरदायी तत्व कौन से हैं?
  65. प्रश्न- राजपूत काल में साहित्य की प्रगति की समीक्षा कीजिए।
  66. प्रश्न- 'गठबन्धन धर्म' से क्या तात्पर्य है? क्या यह नियमों एवं सिद्धान्तों के साथ समझौता है?
  67. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहार वंश की उत्पत्ति से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्तों को स्पष्ट कीजिए।
  68. प्रश्न- क्षेत्रीय दलों के अवगुण, टिप्पणी कीजिए।
  69. प्रश्न- नागभट्ट प्रथम कौन था? प्रतिहार वंश के राजनैतिक इतिहास में उसकी उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- सामुदायिक विकास कार्यक्रम क्या है? सामुदायिक विकास कार्यक्रम का क्या उद्देश्य है?
  71. प्रश्न- प्रतिहार वंश के शासक वत्सराज के विषय में आप क्या जानते हैं? उनकी उपलब्धियों को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  73. प्रश्न- नागभट्ट द्वितीय के विषय में बताते हुए उसकी राजनैतिक उपलब्धियों की चर्चा कीजिए।
  74. प्रश्न- पंचायती राज से आप क्या समझते हैं? ग्रामीण पुननिर्माण में पंचायतों के कार्यों एवं महत्व को बताइये।
  75. प्रश्न- "प्रतिहार वंश के शासकों में मिहिरभोज सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था।' स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- भारतीय ग्राम पंचायतों के दोषों की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- प्रतिहार वंश के शासक महेन्द्रपाल प्रथम के विषय में बताते हुए उसकी विजयों का भी उल्लेख कीजिए।
  78. प्रश्न- ग्राम पंचायतों का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
  79. प्रश्न- प्रतिहार शासक महिपाल प्रथम के व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- क्षेत्र पंचायत के संगठन तथा कार्यों का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- गुर्जर प्रतिहारों की शासन व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जिला पंचायत का संगठन तथा ग्रामीण समाज में इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रतिहारकालीन सामाजिक और धार्मिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- भारत में स्थानीय शासन के सम्बन्ध में 'पंचायत राज' के सिद्धान्त व व्यवहार की आलोचना कीजिए।
  85. प्रश्न- नागभट्ट प्रथम की उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नगरपालिका क्या है? तथा नगरपालिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- प्रतिहार वंश के पतन पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- नगरीय स्वायत्त शासन की विवेचना कीजिए।
  89. प्रश्न- गुर्जर शासन का महत्व बताइए।
  90. प्रश्न- ग्राम सभा के प्रमुख कार्य बताइये।
  91. प्रश्न- प्रतिहार वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
  92. प्रश्न- ग्राम पंचायत की आय के प्रमुख साधन बताइये।
  93. प्रश्न- मिहिरभोज के आधिपत्य का विस्तार बताइए।
  94. प्रश्न- पंचायती व्यवस्था के चार उद्देश्य बताइये।
  95. प्रश्न- राजशेखर के ग्रन्थ के विषय में बताइए।
  96. प्रश्न- ग्राम पंचायत के चार अधिकार बताइये।
  97. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष के क्या कारण थे? इसमें शामिल प्रमुख शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
  98. प्रश्न- न्याय पंचायत का गठन किस प्रकार किया जाता है?
  99. प्रश्न- सोलंकी वंश की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  100. प्रश्न- ग्राम पंचायत से आप क्या समझते तथा ग्राम सभा तथा ग्राम पंचायत में क्या अन्तर है?
  101. प्रश्न- सोलंकी वंश के प्रमुख शासकों से अवगत कराइये।
  102. प्रश्न- ग्राम पंचायत की उन्नति के लिए सुझाव दीजिए।
  103. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष के परिणाम पर टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- ग्रामीण समुदाय पर पंचायत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में राष्ट्रकूटों की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  106. प्रश्न- भारत में पंचायत राज संस्थाएँ बताइये।
  107. प्रश्न- त्रिकोणात्मक संघर्ष में पालों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  108. प्रश्न- क्षेत्र पंचायत का ग्रामीण समाज में क्या महत्व है?
  109. प्रश्न- सोलंकी वंश के इतिहास को जानने के साधनों से अवगत कराइये।
  110. प्रश्न- ग्राम पंचायत के महत्व को बढ़ाने के लिए सरकार के द्वारा क्या प्रयास किये गये हैं?
  111. प्रश्न- सोलंकी वंश के राजनैतिक इतिहास के विषय में बताइये।
  112. प्रश्न- नगर निगम के संगठनात्मक संरचना का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- परमार वंश का इतिहास जानने के साधनों का वर्णन कीजिए। इस वंश की उत्पत्ति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- नगर निगम के भूमिका एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- परमार शासक मुंज के विषय में बताइए। उसके शासन काल की राजनैतिक उपलब्धियों की चर्चा कीजिए।
  116. प्रश्न- नगरीय स्वशासन संस्थाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  117. प्रश्न- परमार नरेश भोज का परिचय दीजिए। भारतीय इतिहास में उसकी राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  118. प्रश्न- नगरीय निकायों की संरचना पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- परमार वंश का प्रसिद्ध शासक आप किसे मानते हैं?
  120. प्रश्न- नगर पंचायत पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- परमारों की कला पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- दबाव व हित समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  123. प्रश्न- परमार शासन व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं?
  124. प्रश्न- दबाव समूह से आप क्या समझते हैं? दबाव समूहों के क्या लक्षण हैं? दबाव समूहों द्वारा अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली के विषय में बतायें।
  125. प्रश्न- परमार वंश के पतन का वर्णन कीजिए।
  126. प्रश्न- दबाव समूह अपने हित पूरा करने के लिए किस प्रकार कार्य करते हैं?
  127. प्रश्न- नवसाहसांकचरित में वर्णित परमारों के इतिहास के विषय में बताइए।
  128. प्रश्न- दबाव समूहों के महत्व पर प्रकाश डालिये।
  129. प्रश्न- भोज के उत्तराधिकारियों का वर्णन कीजिए।
  130. प्रश्न- भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के विषय में संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
  131. प्रश्न- किन साधनों से बंगाल के पाल वंश के विषय में जानकारी प्राप्त होती है? इसकी उत्पत्ति के विषय में बताइए।
  132. प्रश्न- दबाव समूह किसे कहते हैं? दबाव समूह के कार्यों को लिखिए। भारत की राजनीति में दबाव समूहों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
  133. प्रश्न- पाल नरेश धर्मपाल के विषय में बताते हुए उसकी उपलब्धियों को स्पष्ट कीजिए।
  134. प्रश्न- मतदान व्यवहार क्या है? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्वों की विवेचना कीजिए।
  135. प्रश्न- पाल नरेश देवपाल के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी राजनैतिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  136. प्रश्न- दबाव समूह व राजनीतिक दलों में क्या-क्या अन्तर है?
  137. प्रश्न- भारतीय इतिहास में पाल वंश के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
  138. प्रश्न- दबाव समूहों के दोषों का वर्णन करें।
  139. प्रश्न- पालकालीन कला एवं स्थापत्य पर प्रकाश डालिए।
  140. प्रश्न- भारत में श्रमिक संघों की विशेषताएँ। टिप्पणी कीजिए।
  141. प्रश्न- धर्मपाल की पराजय के विषय में बताइए।
  142. प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- पालों की राजनैतिक सत्ता का चर्मोत्कर्ष बताइए।
  144. प्रश्न- भारत में निर्वाचन पद्धति के दोषों को दूर करने के सुझाव दीजिए।
  145. प्रश्न- हिन्दू शाही के पराक्रमी राजा "भीमदेव के विषय में विस्तृत रूप से बताइये।
  146. प्रश्न- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1996 के अंतर्गत चुनाव सुधार के संदर्भ में किये गये प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
  147. प्रश्न- हिन्दू शाही को विस्तृत रूप से बताइये।
  148. प्रश्न- क्या निर्वाचन आयोग एक निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र संस्था है? स्पष्ट कीजिए।
  149. प्रश्न- हिन्दू शाही वंश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  150. प्रश्न- चुनाव सुधारों में बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।
  151. प्रश्न- त्रिलोचनपाल एवं भीमपाल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  152. प्रश्न- मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व बताइये।
  153. प्रश्न- महमूद गजनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  154. प्रश्न- चुनाव सुधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  155. प्रश्न- मुस्लिम आक्रमण के समय उत्तर की राजनीतिक स्थिति का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  156. प्रश्न- अलगाव से आप क्या समझते हैं? अलगाववाद के कारण क्या हैं?
  157. प्रश्न- महमूद गजनवी के भारतीय आक्रमणों का वर्णन कीजिए।
  158. प्रश्न- भारतीय राजनीति में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  159. प्रश्न- चन्देल वंश के इतिहास के साधनों का वर्णन करते हुए इस वंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में बताइए।
  160. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक पक्ष को स्पष्ट कीजिए।
  161. प्रश्न- चन्देल नरेश यशोवर्मन कौन था? उसकी राजनैतिक उपलब्धियों पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
  162. प्रश्न- सकारात्मक राजनीतिक कार्यवाही से क्या आशय है? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं?
  163. प्रश्न- चन्देल नरेश धंग के शासन काल एवं उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
  164. प्रश्न- जाति को परिभाषित कीजिए। भारतीय राजनीति पर जातिगत प्रभाव का अध्ययन कीजिए। जाति के राजनीतिकरण की विवेचना भी कीजिए।
  165. प्रश्न- चन्देल शासक विद्याधर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का विवेचन कीजिए।
  166. प्रश्न- निर्णय प्रक्रिया में राजनीतिक दलों में जाति की क्या भूमिका है?
  167. प्रश्न- कीर्तिवर्मन कौन था? उसके शासन काल के विषय में बताते हुए उसकी विजयों का वर्णन कीजिए।
  168. प्रश्न- राज्यों की राजनीति को जाति ने किस प्रकार प्रभावित किया है?
  169. प्रश्न- चन्देल शासन काल में कला की क्या स्थिति थी?
  170. प्रश्न- क्षेत्रीयतावाद (Regionalism) से क्या अभिप्राय है? इसने भारतीय राजनीति को किस प्रकार प्रभावित किया है? क्षेत्रवाद के उदय के क्या कारण हैं?
  171. प्रश्न- चन्देलों के पतन के लिये कौन उत्तरदायी था?
  172. प्रश्न- भारतीय राजनीति पर क्षेत्रवाद के प्रभावों का अध्ययन कीजिए।
  173. प्रश्न- खजुराहो मन्दिरों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  174. प्रश्न- क्षेत्रवाद के उदय के लिए कौन-से तत्व जिम्मेदार हैं?
  175. प्रश्न- प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद बुन्देलखण्ड (जेजाकभुक्ति) में किस वंश का उदय हुआ?
  176. प्रश्न- भारत में भाषा और राजनीति के सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।
  177. प्रश्न- महमूद गजनवी का चन्देलों पर आक्रमण' के विषय में बताइए।
  178. प्रश्न- उर्दू और हिन्दी भाषा को लेकर भारतीय राज्यों में क्या विवाद है? संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  179. प्रश्न- चाहमान वंश के इतिहास जानने के साधनों को बताते हुए इसकी उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
  180. प्रश्न- भाषा की समस्या हल करने के सुझाव दीजिए।
  181. प्रश्न- चाहमान नरेश अणराज के विषय में आप क्या जानते हैं? उसके शासनकाल में हुए प्रमुख युद्धों का वर्णन कीजिए।
  182. प्रश्न- साम्प्रदायिकता से आप क्या समझते हैं? साम्प्रदायिकता के उदय के कारण और इसके दुष्परिणामों की चर्चा करते हुए इसको दूर करने के सुझाव बताइये। भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता का क्या प्रभाव पड़ा? समझाइये।
  183. प्रश्न- चाहमान शासक विग्रहराज चतुर्थ के राज्यकाल का मूल्यांकन कीजिए।
  184. प्रश्न- साम्प्रदायिकता के उदय के पीछे क्या कारण हैं?
  185. प्रश्न- पृथ्वीराज तृतीय के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी सफलताओं एवं असफलताओं परं विस्तृत लेख लिखिए।
  186. प्रश्न- साम्प्रदायिकता के दुष्परिणामों की चर्चा कीजिए।
  187. प्रश्न- चाहमानों की शासन व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  188. प्रश्न- साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव दीजिये।
  189. प्रश्न- शाकम्भरी के चाहमान (चौहान) का परिचय दीजिए।
  190. प्रश्न- भारतीय राजनीति पर साम्प्रदायिकता के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
  191. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ की उपलब्धियाँ बताइए।
  192. प्रश्न- जाति व धर्म की राजनीति भारत में चुनावी राजनीति को कैसे प्रभावित करती है। क्या यह सकारात्मक प्रवृत्ति है या नकारात्मक?
  193. प्रश्न- पृथ्वीराजरासो पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  194. प्रश्न- "वर्तमान भारतीय राजनीति में धर्म, जाति तथा आरक्षण प्रधान कारक बन गये हैं।" इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
  195. प्रश्न- विग्रहराज चतुर्थ के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  196. प्रश्न- 'जातिवाद' और सम्प्रदायवाद प्रजातंत्र के दो बड़े शत्रु हैं। टिप्पणी करें।
  197. प्रश्न- चाहमानों का बुन्देलखण्ड पर आक्रमण बताइए।
  198. प्रश्न- उत्तर प्रदेश के बँटवारे की राजनीति को समझाइए।
  199. प्रश्न- गहड़वाल वंश का इतिहास जानने के साधनों का उल्लेख कीजिए। इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में आप क्या जानते हैं?
  200. प्रश्न- जन राजनीतिक संस्कृति के विकास के कारण का वर्णन कीजिए।
  201. प्रश्न- गहड़वाल शासक गोविन्दचन्द्र के विषय में बताते हुए उसकी विजयों का उल्लेख कीजिए।
  202. प्रश्न- 'भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका' संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  203. प्रश्न- गहड़वाल नरेश जयचन्द्र का परिचय दीजिए। उसकी राजनीतिक सफलताओं तथा असफलताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  204. प्रश्न- चुनावी राजनीति में भावनात्मक मुद्दे पर प्रकाश डालिए।
  205. प्रश्न- गहड़वाल नरेशों के 'शासन प्रबन्ध' पर एक लेख लिखिए।
  206. प्रश्न- भ्रष्टाचार से क्या अभिप्राय है? भ्रष्टाचार की समस्या के लिए कौन से कारण उत्तरदायी हैं? इस समस्या के समाधान के लिए उपाय बताइए।
  207. प्रश्न- गोविन्दचन्द्र गहड़वाल के विषय में आप क्या जानते हैं?
  208. प्रश्न- भ्रष्टाचार के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं?
  209. प्रश्न- जयचन्द गहड़वाल के राज्यकाल की घटनाएँ बताइये।
  210. प्रश्न- भ्रष्टाचार उन्मूलन के कौन-कौन से उपाय हैं?
  211. प्रश्न- गोविन्दचन्द्र के किन राज्यों से कूटनीतिक सम्बन्ध थे? स्पष्ट कीजिए।
  212. प्रश्न- भारत में राजनैतिक, व्यापारिक-औद्योगिक तथा धार्मिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की विवेचना कीजिए।
  213. प्रश्न- कलचुरि वंश के शासक गांगेयदेव के विषय में आप क्या जानते हैं? उसकी विजयों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  214. प्रश्न- भ्रष्टाचार क्या है? भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
  215. प्रश्न- कलचुरि नरेश लक्ष्मीकर्ण के विषय में बताइए उसके शासन काल की प्रमुख राजनैतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  216. प्रश्न- भारत के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार का वर्णन कीजिए।
  217. प्रश्न- कलचुरि वंश का इतिहास जानने के साधन बताइए।
  218. प्रश्न- भ्रष्टाचार के प्रभावों की विवेचना कीजिए।
  219. प्रश्न- गांगेयदेव के राज्यकाल की घटनाएँ लिखिए।
  220. प्रश्न- सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की रोकथाम के सुझाव दीजिये।
  221. प्रश्न- कलचुरि वंश के पतन पर टिप्पणी लिखिए।
  222. प्रश्न- भ्रष्टाचार से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  223. प्रश्न- बंगाल के सेन वंश के विषय में आप क्या जानते हैं? यहाँ के शासक विजयसेन की राजनैतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  224. प्रश्न- भ्रष्टाचार की विशेषताओं को बताइए।
  225. प्रश्न- सेन वंश के नरेश लक्ष्मणसेन का परिचय दीजिए। उसकी राजनैतिक एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।
  226. प्रश्न- लोक जीवन में भ्रष्टाचार के कारण बताइये।
  227. प्रश्न- बंगाल के सेन वंश का संक्षिप्त इतिहास लिखिए।
  228. प्रश्न- राष्ट्रपति शासन क्या है? यह किन परिस्थितियों में लागू होता है? राष्ट्रपति शासन लगने से क्या परिवर्तन होता है?
  229. प्रश्न- अरबों के सिन्ध पर आक्रमण का विवेचन कीजिए।
  230. प्रश्न- दल-बदल की समस्या (भारतीय राजनैतिक दलों में)।
  231. प्रश्न- अरबों की सिन्ध विजय के परिणामों का परीक्षण कीजिए।
  232. प्रश्न- राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के सम्बन्धों पर वैधानिक व राजनीतिक दृष्टिकोण क्या है? उनके सम्बन्धों के निर्धारक तत्व कौन-से हैं?
  233. प्रश्न- महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण के विषय में आप क्या जानते हैं?
  234. प्रश्न- दल-बदल कानून (Anti Defection Law) पर टिप्पणी कीजिए।
  235. प्रश्न- गोरी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति बताइए।
  236. प्रश्न- संविधान के क्रियाकलापों पर पुनर्विलोकन हेतु स्थापित राष्ट्रीय आयोग (2002) की दलबदल नियम पद संस्तुति, टिप्पणी कीजिए।
  237. प्रश्न- मुहम्मद गोरी के भारतीय अभियानों का उल्लेख कीजिए।
  238. प्रश्न- 12वीं शताब्दी में मुसलमानों की विजय और हिन्दुओं की पराजय के क्या कारण थे? स्पष्ट कीजिए।
  239. प्रश्न- तुर्क आक्रमण के क्या कारण थे? इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
  240. प्रश्न- मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध भारतीय शासकों के प्रतिरोध पर प्रकाश डालिए।
  241. प्रश्न- महमूद गजनवी के आक्रमणों के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
  242. प्रश्न- अरबों के आक्रमण के समय भारत की दशा क्या थी?
  243. प्रश्न- तराइन के दूसरे युद्ध के परिणामों का वर्णन कीजिए।

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